कुर्बानी और कुर्बानी का जानवर

 


 
जब कोई इनसान कुर्बानी की नियत से जानवर पालता है और उसके खाने पीने का खयाल रखता है तो उसे उस जानवर से लगाव और मुहबबत हो जाती है।एक दिन ऐसा आता है कि उसी जानवर को खुद अपने ही हाथों अल्लाह की राह में कुर्बान कर देता है।
यही वह कुर्बानी है जो अल्लाह को पसंद है।
कयों कि अल्लाह तआला ने बड़ी आरजुओं के बाद ईबराहीम  अलैहिससलाम को एक सालेह फरजनद अता फरमाया और उसी की कुर्बानी मांग ली ।दोनों बाप और बेटे अल्लाह के हुक्म की तामील में निकल पड़े । ईबराहीम अलैहिससलाम ने जैसे ही बेटे  को जमीन पर लेटा कर गले पर छुरी चलानी चाही फौरन अल्लाह के तरफ से आवाज आई कि ऐ इब्राहीम तुने खाब को सच कर दिखाया। यानी इब्राहीम अलैहिससलाम आजमाईश में कामयाब हो गये और इसमाईल अलैहिससलाम के बदले दुमबा जिबह हुआ।अल्लाह तआला ने इसी इब्राहीम अलैहिससलाम की सुननत को उनके बाद आने वाले लोगों में जारी फरमा दिया।
कुर्बानी का मकसद । अल्लाह ताआला का कुरबत हासिल करना है।
कुर्बानी का जानवर कैसा हो?
कुर्बानी का जानवर सेहत मंद हो।सिंग टुटा न हो । ल॔गड़ा न हो । काना न हो ।
और इतना कमजोर न हो कि हड्डीयों में दम ही न रहे ।
नबी सलललाहु अलैहिवसललम ने फरमाया।
 أربع لاتجوزفي الضحايا:العوراء البين عورها, والمريضة البين مرضها, والعرجاءالبين ضلعها, والكبيرة التي لاتنقي"(أحمد(4/300)أبوداؤد:الأضاحي /6(2802)ترمذي:الأضاحي
चार किसम के जानवर की कुर्बानी जायज नहीं है ,ऐसा काना जिसका काना पन जाहिर हो ,ऐसा बिमार जिसका बिमारी जाहिर हो , ऐसा लंगड़ा 
जिसका लंगड़ा पन जाहिर हो , और इतना कमजोर कि उसकी हड्डीयां जाहिर हो।


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