शैतानी वसवसे और इलाज



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ईनसान और शैतान की दुशमनी शुरू से ही चली आ रही है। जब अल्लाह ताआला ने हजरत आदम अलैहिससलाम का पुतला बना कर फरिशतों से सजदा करने को कहा तो सारे फरिशतों ने सजदा किया लेकिन शैतान ईबलिस ने सजदा करने से इंकार कर दिया। उसी वकत से उसने ईनसान को बहकाने का इरादा कर लिया और अल्लाह ताआला से मुहलत मांगी । अल्लाह ताआला ने उसे कयामत तक के लिए मुहलत दे दी। और फरमा दिया कि जो मेरे नेक बंदे होंगे वह तेरे बहकावे में नही आऐंगे। और जो तेरे बहकावे में आऐंगे उनके लिए दरदनाक अजाब तैयार कर रखा है। अल्लाह तआला ने कुरआन मजीद में इरशाद फरमाया,
(إِنَّ الشَّيْطَانَ لَكُمْ عَدُوٌّ فَاتَّخِذُوهُ عَدُوًّا إِنَّمَا يَدْعُو حِزْبَهُ لِيَكُونُوا مِنْ أَصْحَابِ السَّعِيرِ) (فاطر:۶)
बेशक शैतान तुम्हारा दुश्मन है।तुम उसे अपना दुश्मन ही समझो। वह अपने गिरोह वालों को इस लिए बुलाता है कि वे जहन्नम वालों में से हो जाएँ।
आज हमारे मुआशरे में इस शैतान ने इंसानों पर अपनी पकड़ ईतनी मजबूत बना लिया है कि इंसान अच्छे और बुरे, हलाल व हराम में फर्क नहीं कर पाता। भाई, भाई का दुश्मन, बाप बेटे का दुश्मन, पड़ोसी  पड़ोसी का दुश्मन बना हुआ है।
हर वकत इंसान के दिमाग में बुरे  बुरे खियालात आते रहते हैं  जो किसी न किसी को नुकसान पहुँचाने के लिए होते हैं या तो जिनसी हवस मिटाने के लिए होते हैं। वह तो ईंसानों पर अल्लाह तआला का बहुत बड़ा करम है कि वह सिर्फ बुरे खियालात पर कोई पकड़ नहीं करेगा  जब तक कि वह जबान से कह न दे या अमल न करले ।
नबीऐ पाक मुहम्मद (सलललाहु अलैही व सललम) ने इरशाद फरमाया;
((اِنَّ اللّٰہَ تَجَاوزَ لِأُمَّتِيْ مَا حَدَّثَتْ بِہٖ اَنْفُسُھَا مَا لَمْ یَتَکَلَّمُوا، أَویَعْمَلُوْا بِہٖ)) [1]
बेशक अल्लाह तआला मेरी उममत के लोगों में पैदा होने वाले बुरे खियालात माफ कर देता है जब तक कि वह उन बुरे खियालात के मुताबिक अमल न कर ले, या उनके जुबान से अदा न कर दे ।
शैतानी वसवसे सिर्फ यहीं बस नही होते बल्कि  नेक अमल में भी शामिल होते हैं। जैसे नमाज में इधर उधर के सोच , एक रिकात पढ़ी या दो रिकात , तशॅहुद में बैठा या नही ।
शैतानी वसवसे  से बचने का इलाज ,।
हर तरह अ शैतानी वसवसे ,और हर तरह के खराबीयों से बचने के लिए कुरआने करीम की यह दुआ काफी है;
♡(قُلْ أَعُوذُ بِرَبِّ النَّاسِ (1) مَلِكِ النَّاسِ (2) إِلَهِ  النَّاسِ (3) مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ (4) الَّذِي يُوَسْوِسُ فِي صُدُورِ النَّاسِ (5) مِنَ الْجِنَّةِ وَالنَّاسِ (6) (الناس)
तरजुमा : कह दिजिये मैं पनाह मांगता हुं लोगों के रब की, लोगों के बादशाह की , लोगों के माबूद की ,और वसवसा डालने वाले के बुराई से,जो लोगों के दिलों में वसवसा डालते हैं जिननातों और इंसानों में से ।
अल्लाह तआला दुसरी जगह फरमाता है,
♡وَقُلْ رَبِّ أَعُوذُ بِكَ مِنْ هَمَزَاتِ الشَّيَاطِينِ (97) وَأَعُوذُ بِكَ رَبِّ أَنْ يَحْضُرُونِ )(المومنون:۹۷،۹۸)
और आप कह दिजिये ऐ मेरे रब मैं शैतानों के उकसाहटों से पनाह मांगता हुं ,और ऐ मेरे रब मैं उससे भी पनाह मांगता हुं जो मेरे पास आ मैजूद हों ।

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